२० अगस्त सन् १९८८ को पटना में रंगकर्म चार लोग - संजय उपाध्याय (जो उस वक़्त राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्र थे), अशोक तिवारी (जो संजय के साथ कई नाट्य संस्थाओं से जुड़े रहे थे), धनञ्जय नारायण सिन्हा (दोनों के गुरु) और डॉ बी. एन. सिंह (रंगमर्मज्ञ) ने एक नाट्य संस्था के निर्माण की योजना बनायीं और इसे नाम दिया गया " निर्माण कला मंच " । इस संस्था का उद्देश्य था- बिहार की लोक कला शैलियों का पुनरुत्थान एवं विकास, किसी भी तरह की वर्जना को दरकिनार कर नाटकों का सृजन । वर्ष १९९१ में इसे सोसाईटी रजिस्ट्रेशन एक्ट १८६० के तहत निबंधित कराया गया ।
अबतक इस संस्था के द्वारा भारत के तक़रीबन सभी नगरों में ५० से अधिक मंच नाटकों के हज़ार से अधिक प्रदर्शन हो चुके हैं । संस्था मंच नाटकों के अलावा नुक्कड़ नाटकों, कविता मंचन, कहानी मंचन, जीवनीपरक नाटकों, नाट्य महोत्सवों, सामाजिक जागरूकता कार्यक्रमों, गोष्ठियों तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करती रही है ।
संस्था को सन् २००० में संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा रंगमंडल बनाने की अनुमति मिली और आज संस्था से कला के हर क्षेत्र के लोग जुड़े हुए हैं |
इस अत्याधुनिक एवं प्रतिपल परिवर्तित होने वाले परिवेश में लोक रंगमंच को पूरी सक्रियता और गंभीरता के साथ दर्शकों तक पहुँचाने और अपने नए प्रयोगों के माध्यम से उन्हें सुरक्षित करने की प्रयोगों के माध्यम से उन्हें सुरक्षित करने की प्रबल इच्छा और प्रतिबद्धता के साथ हमारी यात्रा लगातार चल रही है ।