सन् १९९९ में राष्ट्रीय भारत रंग महोत्सव के उद्घाटन वर्ष में निर्माण के बिदेसिया ने खुद को मंच पर पेश किया और ये सिलसिला लगातार चार वर्षों तक चला और सन् २००० में पद्मश्री डॉ. उषा किरण खान लिखित "उगना रे मोर कतए गेलाह ", २००१ में रविन्द्र भारती लिखित "कंपनी उस्ताद" तथा २००२ में पद्मश्री डॉ. उषा किरण खान लिखित "हिरा डोम" का मंचन हुआ। चारों नाटकों का निर्देशन स्वनामधन्य रंग विभूति श्री संजय उपाध्याय का था। इसके बाद किन्ही कारणों से ये सिलसिला टूटा और पुनः २००७ में फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास पर आधारित "परती परिकथा" एवं २००८ में श्रीकांत किशोर लिखित "हरसिंगार" की प्रस्तुतियाँ हुई। "हरसिंगार" को भारत रंग महोत्सव के सेटेलाइट फेस्टिवल में भी आमंत्रित किया गया। पुनः कुछ वर्षों के विराम के बाद सन् २०१३ में पियुष मिश्रा लिखित "गगन दमामा बाज्यो" और २०१४ में हृषिकेश सुलभ लिखित "धरती आबा" का प्रदर्शन हुआ।