अदा

अदा (अकादमी ऑफ ड्रामाटिक्स एन एस्थेटिक्स ) निर्माण की एक योजना या लक्ष्य ही नहीं बल्कि स्वपन भी था।
         नाट्य कला के मार्गदर्शन के अभाव में कई लोग इस विधा से मुँह मोड़ लेते हैं और स्वयं के विकास के साथ ही रंगकर्म के विकास एवं रंगकर्म के जरिये समाज के पथ से अलग हो जाते हैं। नाट्य विद्यालयों की सीमितता और कम सीटों की उपलब्धता के कारण भी कई रंगकर्मी अपनी यात्रा को बीच में ही छोड़ देने पर विवश होते हैं। ऐसे रंगकर्मियों को उचित प्रशिक्षण देने, नए लोगों को रंगकर्म से जोड़ने और रंगशिक्षकों की प्रतिभा को सही दिशा में फैलाने के उद्देश्य से "अदा" का गठन किया गया, जिसके तहत रंगकर्म के सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक ज्ञान को प्रशिक्षार्थियों ने ग्रहण किया और रंगकर्म करते हुए रंगमंच की शिक्षा प्राप्त की।
इस कार्यक्रम में शताधिक शिष्यों ने विभिन्न रंगगुरुओं यथा- चन्द्रहास तिवारी, विनोद राई, बी. के. शर्मा, गुरु विश्वजीत, चन्द्रमाधव बारिक, मनीष जोशी, फ़ैज़ मोहम्मद, प्रवीण कु. गुंजन, सुमन कुमार, शुभ्रो भट्टाचार्या, अविजित चक्रवर्ती, गौतम मजूमदार आदि के सानिध्य में रंगशिक्षा पायी।